वायरस न होते तो मनुष्य भी नहीं होते! जानें कैसे हम वायरसों के हाथों की कठपुतली हैं
वंशावली भी शामिल है. जी हां, एक तरह से हम इन्हीं वायरसों के इशारों पर नाचते हैं, तो इसके आगे की बात ये है कि वायरसों के बगैर मनुष्य के जीवन की कल्पना करना तक कठिन है. ये सब बातें नहीं, बल्कि अब तक की रिसर्च पर आधारित वैज्ञानिकों के दावे हैं, जिनके पीछे अध्ययन आधारित तर्क (Scientific research) हैं.
कोरोना वायरस (Corona Virus) संकट के इस दौर में दुनिया भर में कई तरह की रिसर्च चल रही हैं. कहीं कोविड 19 (Covid 19) वैश्विक महामारी (Pandemic) का कारण बने वायरस के बारे में विस्तार से समझा जा रहा है तो कहीं, इस वायरस के खिलाफ वैक्सीन (Vaccine) के लिए शोध हो रहे हैं. इसी बीच आपको जानना चाहिए कि मनुष्यों के साथ वायरसों का रिश्ता कितना पुराना और गहरा रहा है.
हमारे डीएनए में वायरसों के डीएनए 8% हैं!
मनुष्यों के जीनोम यानी जीन्स के समूह में वायरस आनुवांशिक तत्व के करीब 1 लाख ज्ञात अंश हैं. स्टैनफोर्ड के विषाणु विशेषज्ञ जैन कैरेट ने एक ब्लॉग पर लिखा है कि हमारे डीएनए का करीब 8% हिस्सा वायरसों के डीएनए सीक्वेंस से बना है.
वायरसों के बगैर हमारा अस्तित्व नामुमकिन
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के विकासवादी वैज्ञानिक लुइस विलैरियल ने कहा है कि 'लाखों करोड़ों सालों से वायरसों ने हमारे डीएनए को अपना घर बनाकर अब हमें अपने हाथों की कठपुतली बना लिया है.' वहीं, कैरेट की मानें तो 'हमारा अस्तित्व वायरसों के बिना संभव नहीं है.' इस बारे में और कुछ तथ्य आपको चौंका सकते हैं.
शिशु के लिए कवच होते हैं वायरस?
स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिकों ने कुछ साल पहले सिर्फ 3 दिन के भ्रूण का विश्लेषण कर पाया था कि उसकी कोशिकाओं में न केवल अभिभावकों बल्कि 2 लाख सालों से हमें प्रभावित करने वाले ह्यूमन एंडोजिनस रेट्रोवायरस-के का आनुवांशिक तत्व भी था. न्यू साइन्टिस्ट से बातचीत करते हुए रिसर्चर जॉना विसॉका ने बताया कि उस भ्रूण की कोशिकाओं में वायरल प्रोटीन भरपूर था. दूसरे अध्ययन के मुताबिक भ्रूण या शिशु को मां से जुड़ने के लिए ये प्रोटीन ही रास्ता बनाते हैं.
इसका मतलब यह है कि इस वायरस के तत्वों की मौजूदगी भ्रूण को फ्लू फैलाने वाले अन्य वायरसों और संभवत: कोविड 19 तक से बचाने की क्षमता विकसित करती है. यानी पुराने समय में जो वायरस हमें नुकसान पहुंचा चुका है, अब वही हमारे शिशु में मददगार सुरक्षा कवच की तरह काम करता है.
क्यों जीवन के लिए ज़रूरी हैं वायरस?
न्यू साइन्टिस्ट के एक और लेख में साफ लिखा है कि 'वायरसों के जीन्स के ज़रिये ही कोशिकाओं का उतकों और अंगों में रूपांतरण संभव हो पाता है. इनके बगैर, प्राणियों की जीवन सिर्फ कोशिका रूपी बिंदुओं तक ही सिमटकर रह जाता.' टीओआई के एक लेख पर आधारित इस रिपोर्ट का सार यही है कि मनुष्यों की बायोलॉजी वायरसों की बायोलॉजी पर काफी निर्भर करती है.
ये भी पढ़ें :-
चीन में महामारी की 110 साल पुरानी कहानी, आज जैसे हालात में तब दुनिया एक साथ थी
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हमारे डीएनए में वायरसों के डीएनए 8% हैं!
मनुष्यों के जीनोम यानी जीन्स के समूह में वायरस आनुवांशिक तत्व के करीब 1 लाख ज्ञात अंश हैं. स्टैनफोर्ड के विषाणु विशेषज्ञ जैन कैरेट ने एक ब्लॉग पर लिखा है कि हमारे डीएनए का करीब 8% हिस्सा वायरसों के डीएनए सीक्वेंस से बना है.
वायरसों के बगैर हमारा अस्तित्व नामुमकिन
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के विकासवादी वैज्ञानिक लुइस विलैरियल ने कहा है कि 'लाखों करोड़ों सालों से वायरसों ने हमारे डीएनए को अपना घर बनाकर अब हमें अपने हाथों की कठपुतली बना लिया है.' वहीं, कैरेट की मानें तो 'हमारा अस्तित्व वायरसों के बिना संभव नहीं है.' इस बारे में और कुछ तथ्य आपको चौंका सकते हैं.
न्यूज़18 क्रिएटिव.
शिशु के लिए कवच होते हैं वायरस?
स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिकों ने कुछ साल पहले सिर्फ 3 दिन के भ्रूण का विश्लेषण कर पाया था कि उसकी कोशिकाओं में न केवल अभिभावकों बल्कि 2 लाख सालों से हमें प्रभावित करने वाले ह्यूमन एंडोजिनस रेट्रोवायरस-के का आनुवांशिक तत्व भी था. न्यू साइन्टिस्ट से बातचीत करते हुए रिसर्चर जॉना विसॉका ने बताया कि उस भ्रूण की कोशिकाओं में वायरल प्रोटीन भरपूर था. दूसरे अध्ययन के मुताबिक भ्रूण या शिशु को मां से जुड़ने के लिए ये प्रोटीन ही रास्ता बनाते हैं.
इसका मतलब यह है कि इस वायरस के तत्वों की मौजूदगी भ्रूण को फ्लू फैलाने वाले अन्य वायरसों और संभवत: कोविड 19 तक से बचाने की क्षमता विकसित करती है. यानी पुराने समय में जो वायरस हमें नुकसान पहुंचा चुका है, अब वही हमारे शिशु में मददगार सुरक्षा कवच की तरह काम करता है.
क्यों जीवन के लिए ज़रूरी हैं वायरस?
न्यू साइन्टिस्ट के एक और लेख में साफ लिखा है कि 'वायरसों के जीन्स के ज़रिये ही कोशिकाओं का उतकों और अंगों में रूपांतरण संभव हो पाता है. इनके बगैर, प्राणियों की जीवन सिर्फ कोशिका रूपी बिंदुओं तक ही सिमटकर रह जाता.' टीओआई के एक लेख पर आधारित इस रिपोर्ट का सार यही है कि मनुष्यों की बायोलॉजी वायरसों की बायोलॉजी पर काफी निर्भर करती है.
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